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Saturday, July 12, 2014
Friday, July 4, 2014
शान्ती केसे पाएं
शान्ती केसे पाएं
तृष्णा से बढ़कर कोई व्याधी नहीं है !
दया के समान कोई धर्म नही है !
सत्य जीवन है और असत्य म्रत्यु !
घ्रणा करनी हो तो अपने दोषों से करो !
लोभ करना हो तो प्रभू के स्मरण का करो !
बैर करना हो तो अपने दुराचारों से करो !
दूर रहना हो तो बुरे संग से रहो !
मोह करना हो तो परमात्मा से करो !
तृष्णा से बढ़कर कोई व्याधी नहीं है !
दया के समान कोई धर्म नही है !
सत्य जीवन है और असत्य म्रत्यु !
घ्रणा करनी हो तो अपने दोषों से करो !
लोभ करना हो तो प्रभू के स्मरण का करो !
बैर करना हो तो अपने दुराचारों से करो !
दूर रहना हो तो बुरे संग से रहो !
मोह करना हो तो परमात्मा से करो !
शान्ती के समान कोई टाप नहीं है !
संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है !
!! ॐ शांती !!
संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है !
!! ॐ शांती !!
शान्ती केसे पाएं
शान्ती केसे पाएं
शान्ती के समान कोई तप नहीं है !
संतोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है
Thursday, July 3, 2014
Fwd: [Suvichar - Good Thoughts by Param Pujya Sudhanshuji Maharaj] प्रकाश फैलाओ
प्रकाश फैलाओ
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जाग्रत दीप बनकर प्रकाश फेलाओ
दीया कभी भी जलता है तो पूरी दुनिया की जिम्मेदारी नहीं लेता की में सारी दुनिया को रोशनी दूँगा ! लेकिन जहाँ है वहाँ हिम्मत नहीं की अँधेरा उसके पास आ सके बस इतनी सी बात याद रखो ! जहाँ हो वहीं उजाला फैलाओ !
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जाग्रत दीप बनकर प्रकाश फेलाओ
दीया कभी भी जलता है तो पूरी दुनिया की जिम्मेदारी नहीं लेता की में सारी दुनिया को रोशनी दूँगा ! लेकिन जहाँ है वहाँ हिम्मत नहीं की अँधेरा उसके पास आ सके बस इतनी सी बात याद रखो ! जहाँ हो वहीं उजाला फैलाओ !
Wednesday, July 2, 2014
Fwd: [Suvichar - Good Thoughts by Param Pujya Sudhanshuji Maharaj] तुम प्रकाश हो
तुम प्रकाश हो
तुम प्रकाश हो ! तुम्हारी शक्ती अप्रतिम है !लकिन तुम अपनी शक्ती को भूल गये हो ! पिता परमात्मा ने तुम्हें ज्योतिरूप में इस जगत में भेजा है !तुम्हें अपने हिस्से का प्रकाश फैलाना है ! जहाँ भी रहो उस स्थान को प्रकाशित करते रहो !
तुम प्रकाश हो ! तुम्हारी शक्ती अप्रतिम है !लकिन तुम अपनी शक्ती को भूल गये हो ! पिता परमात्मा ने तुम्हें ज्योतिरूप में इस जगत में भेजा है !तुम्हें अपने हिस्से का प्रकाश फैलाना है ! जहाँ भी रहो उस स्थान को प्रकाशित करते रहो !
Fwd: [Suvichar - Good Thoughts by Param Pujya Sudhanshuji Maharaj] स्मरणीय
स्मरणीय
*तीसरी आँख प्रज्ञा की है ! जिसकी अन्दर की आँख खुली है वह कहीं ठोकर नहीं खा सकता !
*जब चिन्तन समाप्त हो जाता है तब व्यक्ती पशुलोक के धरातल पर जीता है !
*अगर स्वयं को कोसने ,प्रताडित करने और दबाने में लगे रहोगे तो कभी आगे न बढ़ सकोगे !
*जीवन में किसी को आगे बढ़ता देख कर ईर्षा का जागना स्वाभाविक है लेकिन अगर ईर्षा को प्रतिस्पर्धा में बदल सको तब तुम सहज ही आगे बढ़ जाओगे !
*तीसरी आँख प्रज्ञा की है ! जिसकी अन्दर की आँख खुली है वह कहीं ठोकर नहीं खा सकता !
*जब चिन्तन समाप्त हो जाता है तब व्यक्ती पशुलोक के धरातल पर जीता है !
*अगर स्वयं को कोसने ,प्रताडित करने और दबाने में लगे रहोगे तो कभी आगे न बढ़ सकोगे !
*जीवन में किसी को आगे बढ़ता देख कर ईर्षा का जागना स्वाभाविक है लेकिन अगर ईर्षा को प्रतिस्पर्धा में बदल सको तब तुम सहज ही आगे बढ़ जाओगे !
Fwd: [Suvichar - Good Thoughts by Param Pujya Sudhanshuji Maharaj] सदगुरू के सूत्र
सदगुरू के सूत्र
उचित योजना -कार्य में सफलता
समय प्रबंधन -उन्नति का पथ
शांत मस्तिष्क -क्ष्रेष्ठ चिंतन
ध्यान की निरन्तरता - प्रभु की निकटता
धनार्जन से पहले-श्रद्धा
सृजन से पहले -सुयोजना
कथन से पहले -विचार
जिस दिन आप यह अपनायेगे उसी क्षण आप आनंद की ओर बढ़ चलेंगे
पूज्य सुधांशु जी महाराज
उचित योजना -कार्य में सफलता
समय प्रबंधन -उन्नति का पथ
शांत मस्तिष्क -क्ष्रेष्ठ चिंतन
ध्यान की निरन्तरता - प्रभु की निकटता
धनार्जन से पहले-श्रद्धा
सृजन से पहले -सुयोजना
कथन से पहले -विचार
जिस दिन आप यह अपनायेगे उसी क्षण आप आनंद की ओर बढ़ चलेंगे
पूज्य सुधांशु जी महाराज
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